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संगीत पद्धतियाँ और संगीत के रूप

संगीत पद्धतियाँ

संपूर्ण भारत में संगीत की मुख्य दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं :-

  1. उत्तरी अथवा हिंदुस्तानी संगीत पद्धति,
  2. दक्षिणी अथवा कर्नाटकी संगीत पद्धति


1. उत्तरी अथवा हिंदुस्तानी संगीत पद्धति

भारतवर्ष के अधिकांश भाग में इसी पद्धति का अधिक चलन है।
यह पद्धति बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मु-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतों में प्रचलित है।

2. दक्षिणी अथवा कर्नाटकी संगीत पद्धति

यह पद्धति तमिलनाडु, मैसुर, आंध्र प्रदेश में ही अधिकतर गायी-बजायी जाती है।
भारतवर्ष में प्रचलित दोनों संगीत पद्धतियाँ एक-दूसरे से पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं। भिन्न होते हुए भी इनमें काफी समानताएँ हैं। दोनों पद्धतियों में एक सप्तक में 22 श्रुतियाँ एवं 12 स्वर हैं। दोनों पद्धतियाँ थाट-राग सिद्धांत को मानती हैं, किंतु दोनों पद्धतियों के स्वरों के नाम, रागों के नाम, थाटों की संख्या, तालें और गायन प्रणाली में बहुत ही अंतर है।

संगीत के रूप

संगीत के दो रूप हैं :-
  1.  क्रियात्मक संगीत,
  2.  संगीत शास्त्र

1. क्रियात्मक संगीत

संगीत के रूप में रंग, गीत के प्रकार, आलाप-तान, गायकी, ध्वनि का उतार-चढ़ाव, गायन, वादन तथा नृत्य के प्रकार इत्यादि आते हैं। चूँकि कला का मुख्य उद्देश्य उसकी अभिव्यक्ति अथवा प्रकट करना है और विशेषकर संगीत जैसी कला का प्रत्यक्ष में ही व्यवहार होता है, इसलिए भारतीय संगीत में गायन तथा वादन शैलियों का क्षेत्र बड़ा होने के कारण क्रियात्मक पक्ष बहुत महत्तवपूर्ण है।

2. संगीत शास्त्र

शास्त्रीय संगीत का यह रूप लिखित होता है तथा नियमों से बँधा होता है। इसके अंतर्गत सभी पारिभाषिक शब्द तथा शास्त्र संबंधी तथ्य आते हैं। क्रियात्मक संगीत शास्त्र, जैसे-रागों का परिचय, स्वरलिपि, तान-आलाप, रागों की तुलना आदि। शास्त्र पक्ष में संगीत के पारिभाषिक शब्द, संगीत का इतिहास एवं संगीतज्ञों का परिचय संबंधी अध्ययन आता है।

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संगीत के प्रकार और पक्ष

संगीत के प्रकार संगीत के दो प्रकार हैं ∶- शास्त्रीय संगीत, भाव संगीत 1. शास्त्रीय संगीत जिन संगीत को निर्धारित नियमों के अनुसार गाया या बजाया जाता है उसे शास्त्रीय संगीत कहते हैं। शास्त्रीय संगीत के इस प्रकार को राग, स्वर, ताल, लय आदि के नियमों का पालन करते हुए प्रस्तुत किया जाता है। इसके अंतर्गत ख्याल गायन, ध्रपद, धमार इत्यादि आते हैं। 2. भाव संगीत संगीत के इस प्रकार में शास्त्रीय संगीत के कोई बंधन नहीं होता। इस संगीत का मुख्य उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना होता है। इस प्रकार के संगीत में शब्द और भाव की प्रधानता होती है। भाव प्रधान होने के कारण ही इसे भाव संगीत कहते हैं। इसके अंतर्गत भवन, गीत, लोकगीत, चित्रपट संगीत, विशेष उतसवों पर गाये जाने वाले गीत आदि आते हैं।

संगीत सभी ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ठ

मानवीय भावनाओं की सुंदर अभिव्य़क्ति का साकार रूप ही कला है । विकास के साथ- साथ मानव की कल्पना प्रकृति को सुंदर रूप देने की चेष्टा करने लगी । उसकी इस चेष्टा को अधिकाधिक दिव्य व सौंदर्यमयी बनाने के लिए ललित कलाओं का जन्म हुआ तथा ये कलाएँ निम्न रूप में प्रस्तुत हुईं  - भवन निर्माण के रूप में वास्तुकला | भावों को मूर्ति के रूप में व्यक्त करने पर मुर्तिकला |  प्रकृति के दृश्यों को चित्रफलक पर उतारने पर चित्रकला |  शब्द तथा भाषा के माध्यम से भाव व्यक्त करने पर काव्यकला  |   सप्त स्वरों के माध्यम से भाव व्यक्त करने पर संगीत काला |  यह सर्वविदित है कि संगीत सभी ललित कलाओं में प्राचीन है | जब मनुष्य ने भाषा नहीं सीखी थी किसी - न - किसी रूप में संगीत था | आदिमानव भी अपने ह्रदय के उद्गार , खुशी अदि गुनगुनाकर व्यक्त करता था | जिस प्रकार चिडयों को चहचहाना एवं बालक को रोना स्वतः ही आ जाता है , उसी प्रकार मनुष्य को गुनगुनाना , नाचना आदि स्वतः ही आता है | ऐसा मना गया है कि अन्य कालाओं का जन्म बाद में हुआ | इन सभी ललित कलाओं के लिए भौतिक साधनों तथा उपकरणों की आवश्यकता रहती है , जैसे - वास्त