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संगीत सभी ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ठ

मानवीय भावनाओं की सुंदर अभिव्य़क्ति का साकार रूप ही कला है । विकास के साथ- साथ मानव की कल्पना प्रकृति को सुंदर रूप देने की चेष्टा करने लगी । उसकी इस चेष्टा को अधिकाधिक दिव्य व सौंदर्यमयी बनाने के लिए ललित कलाओं का जन्म हुआ तथा ये कलाएँ निम्न रूप में प्रस्तुत हुईं  -
  1. भवन निर्माण के रूप में वास्तुकला |
  2. भावों को मूर्ति के रूप में व्यक्त करने पर मुर्तिकला | 
  3. प्रकृति के दृश्यों को चित्रफलक पर उतारने पर चित्रकला | 
  4. शब्द तथा भाषा के माध्यम से भाव व्यक्त करने पर काव्यकला  | 
  5. सप्त स्वरों के माध्यम से भाव व्यक्त करने पर संगीत काला | 

यह सर्वविदित है कि संगीत सभी ललित कलाओं में प्राचीन है | जब मनुष्य ने भाषा नहीं सीखी थी किसी - न - किसी रूप में संगीत था | आदिमानव भी अपने ह्रदय के उद्गार , खुशी अदि गुनगुनाकर व्यक्त करता था | जिस प्रकार चिडयों को चहचहाना एवं बालक को रोना स्वतः ही आ जाता है , उसी प्रकार मनुष्य को गुनगुनाना , नाचना आदि स्वतः ही आता है | ऐसा मना गया है कि अन्य कालाओं का जन्म बाद में हुआ | इन सभी ललित कलाओं के लिए भौतिक साधनों तथा उपकरणों की आवश्यकता रहती है , जैसे - वास्तुकला में ईंट , पत्थर , हथौड़ा , मिट्टी अादि ; मूर्तिकला में पत्थर के अलावा चूना ,प्लास्टर , छेनी , हथौड़ी आदि ; चित्रकला में कागज़ , ब्रश , रंग , पेन्सिल आदि ; काव्य तथा संगीत के लिए नाद एवं शब्द आदि की आवश्यकता पड़ती है | संगीत केवल नाद प्रधान ही है | अतः संगीत का स्थान सभी ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ट है | यह कला अपने प्रभाव की व्यापकता , सूक्ष्मता और महत्ता के कारण ललित कलाओं रूपी आकाश का ध्रुव तारा बनी हुई है | लौकिक व अलौकिक , भौतिक तथा आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करने तथा प्रदान करने की जितनी शक्ति संगीत में है , उतनी अन्य कलाओं में नहीं |

संगीत सभी ललित कलाओं में सर्वश्रेठ है | इस संबंध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा " वेदानाम् सामवेदोऽस्मि " तथा वृंदावन के रास में नृत्य एवं बाँसुरी बजाकर इसकी महानता दिखाई गई है | आधुनिक कवि गरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने तो यह भी कहा है कि " जहाँ कविता ( काव्य ) में अभिव्यक्ति असमर्थ है  वहाँ से संगीत की पहली सीढ़ी आरंभ होती है | संगीत अपने सुख - दुःख , प्रेम आदि अनुभूतियों की स्वर , लय , ताल मुद्राओं आदि श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति है | श्रेष्ठता से संपन्नता को कला कहा जाता है , इसलिए संगीत को ' संगीत कला " के नाम से संबोधित किया जाता है | " 
संगीत खुद काव्यमय है , इसलिए इसमें लीन हो जाने पर चित्त सदा भावमय रहता है | संगीत के लोक से उज्जवल रश्मि निकलकर हमें उच्चतम लोक तक ले जाती है |
Music is the divine form form of art which gives us the feeling of great pleasure and the will to live life to the brim.

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संगीत पद्धतियाँ और संगीत के रूप

संगीत पद्धतियाँ संपूर्ण भारत में संगीत की मुख्य दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं :- उत्तरी अथवा हिंदुस्तानी संगीत पद्धति, दक्षिणी अथवा कर्नाटकी संगीत पद्धति 1. उत्तरी अथवा हिंदुस्तानी संगीत पद्धति भारतवर्ष के अधिकांश भाग में इसी पद्धति का अधिक चलन है। यह पद्धति बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मु-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतों में प्रचलित है। 2. दक्षिणी अथवा कर्नाटकी संगीत पद्धति यह पद्धति तमिलनाडु, मैसुर, आंध्र प्रदेश में ही अधिकतर गायी-बजायी जाती है। भारतवर्ष में प्रचलित दोनों संगीत पद्धतियाँ एक-दूसरे से पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं। भिन्न होते हुए भी इनमें काफी समानताएँ हैं। दोनों पद्धतियों में एक सप्तक में 22 श्रुतियाँ एवं 12 स्वर हैं। दोनों पद्धतियाँ थाट-राग सिद्धांत को मानती हैं, किंतु दोनों पद्धतियों के स्वरों के नाम, रागों के नाम, थाटों की संख्या, तालें और गायन प्रणाली में बहुत ही अंतर है।

संगीत के प्रकार और पक्ष

संगीत के प्रकार संगीत के दो प्रकार हैं ∶- शास्त्रीय संगीत, भाव संगीत 1. शास्त्रीय संगीत जिन संगीत को निर्धारित नियमों के अनुसार गाया या बजाया जाता है उसे शास्त्रीय संगीत कहते हैं। शास्त्रीय संगीत के इस प्रकार को राग, स्वर, ताल, लय आदि के नियमों का पालन करते हुए प्रस्तुत किया जाता है। इसके अंतर्गत ख्याल गायन, ध्रपद, धमार इत्यादि आते हैं। 2. भाव संगीत संगीत के इस प्रकार में शास्त्रीय संगीत के कोई बंधन नहीं होता। इस संगीत का मुख्य उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना होता है। इस प्रकार के संगीत में शब्द और भाव की प्रधानता होती है। भाव प्रधान होने के कारण ही इसे भाव संगीत कहते हैं। इसके अंतर्गत भवन, गीत, लोकगीत, चित्रपट संगीत, विशेष उतसवों पर गाये जाने वाले गीत आदि आते हैं।